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भेंटवार्ता यानी साक्षात्कार समाचार संकलन का एक प्रभावी तरीका है। इसका उपयोग विशिष्ट प्रकार के समाचारों के लिए विशेष रूप में प्रयोग किया जाता है। समाचार संकलन में यदि भेंटवार्ता के महत्व को नकारा दिया जाए तो समाचार पत्रों में घटनाओं कार्यक्रमों आदि का विवरण तथ्यों की गहराई से छानबीन से दूर ही रहेगा । ऊपरी तौर पर जो देखने या सुनने को आएगा उसके प्रस्तुतीकरण से पाठकों की जिज्ञासा शांत नहीं हो सकती। तथ्यों की तह में पहुंचने के लिए भेंटवार्ता आवश्यक है । इसकी विशेषता के कारण ही साक्षात्कार पत्रकारिता का अधिकतम एवं अंश भी कहा जाता है कोई भी व्यक्ति ऐसी सूचना या जानकारी जान सकता है। लेकिन किसी को क्या जानकारी दी जाए किस तरह की जानकारी दी जाए सकता है इसके लिए जरूरी है कि फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर,बड़ी-बड़ी योजनाओं में काम करने वाले वैज्ञानिक आदि सभी के पास कुछ ना कुछ ऐसी जानकारी हो सकती है और जिसे प्राप्त किया जा सकता है। साक्षात्कार के प्रकार आम व्यक्ति से साक्षात्कार चुनाव से संबंधित हत्या से संबंधित इत्यादि हो सकते हैं इसमें पड़ोस के व्यक्तियों या घटना स्थल पर उपस्थित लोगों से बातचीत की जाती है इस तरह के साक्षात्कार लेना काफी मुश्किल भी होता है क्योंकि किसी व्यक्ति से घटना के बारे में पूछताछ करने पर उसे संदेह में भी डाल सकता है आ सकता है यह कार्य रिपोर्टर का ही है कि वह उन व्यक्तियों का विश्वास जीतें इस तरह के साक्षात्कार का कोई मार्ग नहीं होता है परेशानियां उठानी पड़ती है असम बंध और बातें सुननी पड़ती है और यह सब रिपोर्टरों को सुनना और सहना पड़ता है ताकि उसके उद्देश्य की पूर्ति हो सके। आकस्मिक साक्षात्कार इसे अंग्रेजी में कैजुअल इंटरव्यू भी कहते हैं और यह ज्यादातर अचानक होते हैं सामान्यतः यह पूर्व उद्देश्य विभिन्न होते हैं एक संवाददाता और समाचार स्रोत रास्ते में मिलकर बातें करते हैं और वह समाचार के रूप में या छात्र के रूप में प्रकाशित किए जाते हैं संवाददाता और समाचार स्रोत कभी-कभी भोजन अथवा पार्टी के दौरान आकस्मिक रूप से बातों का मीनिंग करते हैं इस तरह की बातों में बिना किसी तैयारियो व दृष्टिकोण के ही बातचीत होती हैं इसी वार्ता से कभी-कभी एक काफी बड़ी स्टोरी मिल जाती है व्यक्तित्व साक्षात्कार- लोगों के बारे में लंबे विवरण फीचर लेखन के लिए इस तरह के साक्षात्कार किए जाते हैं अखबारों में तो इस तरह के साक्षात्कार छपते हैं मगर ज्यादातर यह नजर आते हैं उदाहरण के तौर पर हम फिल्म नागिन में अभिनेताओं के साक्षात्कार पाते हैं इस तरह के साक्षात्कार में अपने स्रोत से काफी गहराई भरे सवाल पूछता है और यह सवाल उसके निजी जिंदगी के बारे में अथवा किसी विषय के बारे में होता है कभी अखबार एक निश्चित स्थान पर साक्षात्कार को जगह देते हैं उदाहरण के तौर पर टाइम्स ऑफ इंडिया में ज्यादातर एडिटोरियल पेज पर नजर आते हैं उसी तरह दैनिक जागरण में भी एडिटोरियल पेज पर नजर आते हैं साक्षात्कार पूरी स्टोरी का एक हिस्सा भी होता है जो ब्लॉक में दिया जाता है यह काफी कम समय में आयोजित किया जाता है और इस तरह के साक्षात्कार का उद्देश्य संवाददाता द्वारा समाचार से ही संबंधित किन्ही महत्वपूर्ण निर्धारित प्रश्नों का उत्तर पाना होता है इस तरह के साक्षात्कार से संवाददाता न्यू स्टोरी के बारे में ज्यादा जानकारियां प्राप्त करते हैं और उसे अपनी स्टोरी में कोटेशन के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। टेलीफोन अथवा ई-मेल द्वारा साक्षात्कार- कभी-कभी साक्षात्कार दाता किसी दूर जगह पर स्थित होता है अथवा उसके पास समय नहीं होता है ऐसे में संवाददाता प्रश्नों की सूची बनाकर साक्षात्कार दाता को ईमेल द्वारा भेजता है या टेलीफोन से पूछता है ऐसे में प्रश्नों का स्पष्ट होना बहुत जरूरी है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में साक्षात्कार थोड़ी अलग होती है इसमें साक्षात्कार दाता के सामने कैमरा होता है समय की भी सीमा होती है सवाल के जवाब को छेड़छाड़ करने की गुंजाइश कम होती है ऐसे में संवाददाता को साक्षात्कार से पूर्व साक्षात्कार दाता से वार्तालाप कर उसके कैमरे के सामने आने वाले डर को कम करना होता है किसी भी प्रश्न का जवाब आता है टीवी और रेडियो के संवादाता इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तकनीक से परिचित होना पड़ता है इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का एक विशेष महत्व है इसका उपयोग होता है जैसे आप की अदालत कार्यक्रम रूबरू कार्यक्रम में विशिष्ट व्यक्तियों से सवाल जवाब होते हैं डॉक्टर वकील विशेषज्ञ स्वास्थ्य संबंधी और कानून संबंधी पर कार्यक्रम चलाए जाते हैं फीचर में भी विषय से संबंधित व्यक्तियों की प्रतिक्रियाएं सूत्रधार यानी एंकर की टिप्पणी के साथ पिरोए जाते हैं समाचारों का ब्यौरा बताते समय घटनास्थल के दृश्यों के साथ संबंधित व्यक्तियों की राय और प्रतिक्रिया प्रदर्शित की जाती है जहां संवाददाता और कैमरामैन नहीं हो वहां से संबंधित व्यक्तियों की ध्वनि रिकॉर्डिंग प्रस्तुत की जाती है जिससे समाचार की प्रस्तुति की जाती है स्थापित प्रभावोत्पादक संबंधित व्यक्तियों की बातचीत करती है तो उसके हावभाव और बोलने की शैली भी बहुत कुछ कह जाती है और मुद्रित माध्यम वंचित रह जाती है दृश्य श्रव्य माध्यम के कारण अधिक जीवंत और प्रभावशाली माध्यम सिद्ध हो रहा है साक्षात्कार के दौरान ध्यान देने वाली बातें बिना तैयारी के साक्षात्कार लेने नहीं जाना चाहिए साक्षात्कार दाता तथा उसके व्यवसाय की पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी अधिक से अधिक प्राप्त करने से पहले अपना परिचय देना चाहिए उसे अपना नाम तथा समाचार पत्र का नाम बता देना चाहिए कार में सीधे और आसान प्रश्न पूछे जाने चाहिए और कठिन प्रश्नों को बाद में पूछना चाहिए टेलीविजन में कम समय होता है इसलिए रिपोर्टर जल्द ही भारी प्रश्नों को कर देता है रिपोर्टर को चाहिए कि वह अधिकारी से ही साक्षात्कार ले और इसका पता होना चाहिए संवाददाता को अपने उपकरण हमेशा साथ ले जाना चाहिए और मुख्य बातों को अपने नोटपैड समाप्त हो जाने पर कि किसी प्रश्न का जवाब कम तो नहीं पड़ गया है और यदि पड़ गया तो साक्षात्कार दाता से उसे दिलवाने का प्रयास करना चाहिए
अलग-अलग उद्देश्यों से साक्षात्कार लिये जाते हैं। उद्देश्य के अनुसार साक्षात्कार की प्रक्रिया भी अलग-अलग होती है। साक्षात्कार बहुत तर्ह के हो सकते हैं-
उद्योगों में कार्मिक चयन हेतु साक्षात्कार का प्रचलन रहा है। यह एक प्राचीनतम एवं सर्वमान्य विधि के रूप में प्रयुक्त होता आया है। वर्तमान युग में सभी क्षेत्रों में साक्षात्कार को अनिवार्य साधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। यह उम्मीदवार तथा उसकी अनुकूलता (Fitness) को जांच-परखने की एक जीवन्त सामाजिक स्थिति है। इसमें दो पक्ष होते हो। इन पक्षों के बीच की वार्ता ही अन्तिम निर्णय का आधार बनती है।
बिंघम तथा मूर (Bingham & Moore, 1924) ने साक्षात्कार को एक उद्देश्यपूर्ण वार्ता माना है। इन्होंने साक्षात्कार को एक ऐसा चित्र माना जिसके द्वारा साक्षात्कारार्थी को कार्य विशेष के योग्य अथवा अयोग्य घोषित किया जा सकता है। वर्तमान समय में साक्षात्कार के उद्देश्य की भिन्नता को लेकर कई परिवर्तन हुए हैं। भिन्नता के आधार पर साक्षात्कार कभी चयन, कभी मनोवृत्ति, कभी सलाह तो कभी मूल्यांकन आदि हुआ करता है। वाइटेलेस ने साक्षात्कार को आवेदक एवं सेवायोजन पदाधिकारियों के बीच प्रत्यक्ष बातचीत माना है।
वर्तमान में साक्षात्कार केवल सूचना प्राप्ति का ही साधन नहीं बल्कि मापन का भी प्रधान साधन बन गया है। वर्तमान में व्यावसायिक अनुकूलता (Vocational fitness) ज्ञात करने की एक विधि के रूप में इसके कई उद्देश्य प्रकट हुए हैं
वर्तमान समय के सन्दर्भ में साक्षात्कार की भूमिका एक शिक्षक तथा साक्षात्कारार्थी के व्यवहार में प्रचलनकर्त्ता एवं वार्तालाप के सुकोमल प्रोत्साहनकर्त्ता के रूप में उभरने लगी है। साक्षात्कार पद्धति से यह लाभ होता है कि आवेदक गलत प्रतिक्रियाएं (Fake responses) सरलता से नहीं दे पाते हो। साक्षात्कार की परिस्थिति यदि सुगठित होती है तो यह एक उत्प्रेरक (Big motivator) का भी काम कर सकती है। सूचना प्राप्ति का यह एकमात्र स्रोत है। साक्षात्कार के समय आवेदक यह संकेत खोजता रहता है कि बातचीत से उस पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और साक्षात्कारकर्त्ता उसके बारे में क्यासोच रहे हो? इन संकेतों द्वारा आवेदक को प्रबलीकरण (Reinforment) मिलता है। उसका हर अगला व्यवहार इसी प्रत्यक्षीकरण से निर्दिष्ट होने लगता है।
काह्न तथा केंनेल (Kahn and Cannel, 1957) ने साक्षात्कार के अभिप्रेरणात्मक पहलू को विशेष महत्त्व दिया है। इन्होंने साक्षात्कार की सफलता के लिए इन शर्तों को आवश्यक बताया है-
यदि साक्षात्कार के दौरान ये शर्तें प्रश्न निर्माण, वास्तविक संचालन, उम्मीदवार के मानसिक स्तर, उसकी तत्परता और भाग लेने की इच्छा आदि विविध स्तरों पर पूरी हो जाती है तो इसके फलस्वरूप दिया गया मापन और निर्णय भी बेजोड़ होगा। एक सफल साक्षात्कारकर्त्ता मृदुभाषी के साथ धैर्यपूर्वक सुनने वाला भी होता है। सारी सूचनाएं साक्षात्कारकर्त्ता से होकर ही गुजरती है। इसलिए साक्षात्कारकर्त्ता का यह धर्म है कि वह काम की सूचनाओं को एकत्र करे, सूचना-संकेतों की तौल करे, उन्हें सही रूप से समन्वित करे और अन्त में आवेदक के चयन के बारे में निर्णय पर पहुंचे। साक्षात्कार की रचना वार्तालाप (Conservation) से ही होती है। इसलिए इसकी सफलता भी दोनों पक्षों की वार्तालापीय कौशल से निर्धारित होगी। किसी अप्रत्याशित घटना के द्वारा कभी-कभी साक्षात्कार के दौरान स्थापित अनुबंध बिगड़ जाये तो ऐसी स्थिति में पुनः नए सिरे से संतुलन खोजने की स्थिति आ जाती है। उद्योगों में साक्षात्कार का चिकित्सात्मक उपयोग भी होने लगा हैं। सभी जगह संरचित साक्षात्कार (Structured interview) का उपयोग किया जाता है।
वर्तमान में साक्षात्कार के सिद्धान्त और व्यवहार में अपार परिवर्तन हुए हैं। सायमंड्स (Symonds, 1939) ने साक्षात्कार की सफलता हेतु चार कारकों को महत्त्व दिया है-
विधि की अंतिम सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि कर्मचारी संरक्षण (Personnel's protectionory), दूसरों की गोपनीयता के लिए आदर तथा प्राप्त सूचनाओं का सही उपयोग किया जाए तो साक्षात्कार विधि औद्योगिक समस्याओं के अध्ययन हेतु अमूल्य धरोहर सिद्ध हो सकती है।
साक्षात्कार विधियों में त्रुटियों के कारण इस प्रणाली में पूरा भरोसा करना कठिन है। निरीक्षण से स्पष्ट है कि उम्मीदवारों का मूल्यांकन करने में विभिन्न साक्षात्कारकर्त्ताओं द्वारा प्रचुर भिन्नताएं सामने आती हैं। साक्षात्कार एक सर्वाधिक आत्मनिष्ठ (सब्जेक्टिव) विधि है। चूंकि मूल्यांकनों में सतत अनुरूपता नहीं होती, इसलिए इस विधि को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। जो विधि विश्वसनीय नहीं है, वह सत्य होने का दावा भी नहीं कर सकती है।
स्कॉट (Scott), हालिंगवर्थ (Holling wroth, 1922) तथा वैनगर (Wanger, 1949) आदि ने इस पर अध्ययन किया। सभी ने इस विधि की विश्वसनीयता पर भरोसा पूर्ण रूपेण नहीं किया है। साक्षात्कार की कुछ प्रमुख त्रुटियां इस प्रकार हैं-
अधिकांश साक्षात्कारकर्त्ता अनजाने में व्यर्थ की बातों के प्रति पूर्व स्थापित अनुकूलित प्रतिक्रियाओं से प्रभावित होते हैं। जैसे- उम्मीदवार की ध्वनि, बोलने का ढंग आदि। अनुकूलित प्रतिक्रिया में हर व्यक्ति अपनी पसंदगी, नापसंदगी व्यक्त करता है किंतु वह इस बात से अवगत नहीं रहता कि उसे किस प्रकार विशिष्ट व्यवहार रुचिकर तथा अरुचिकर प्रतीत होते हैं।
व्यक्ति की यह धारणा रहती है कि उम्मीदवार साक्षात्कार के समय अपनी जो आदत प्रकट करेगा, वही हर जगह प्रकट करेगा। लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से इसका कोई ठोस आधार नहीं है। इसलिए सामान्यीकृत आदत में विश्वास के फलस्वरूप किसी निर्णय पर पहुंचना कठिन है। साक्षात्कारकर्त्ता को इस प्रकार की आदतों से मुक्त रहने की चेष्टा करनी चाहिए अन्यथा इसके निर्णय दोषपूर्ण हो सकते हैं तथा सारे चयन कार्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
साक्षात्कारकर्त्ता यथासंभव स्वयं को पूर्वाग्रह से मुक्त रखने का प्रयत्न करता है। लेकिन हर संभव ईमानदारी के बावजूद कुछ ऐसी अचेतन मनोवृत्ति रखता है जिसके फलस्वरूप वस्तुओं, व्यक्तियों तथा घटनाओं के प्रति उसका प्रत्यक्षीकरण और व्यवहार विशेष रूपेण प्रभावित होता है। इसलिए साक्षात्कारकर्ता पूर्णरूपेण इन पूर्वाग्रहों से मुक्त होने का दावा नहीं कर सकता।
साक्षात्कार के समय आवेदक पूर्णतः उन्मुक्त न रहकर अधिकांश भयभीत दिखते हैं। यह भी संभव हो सकता है कि कोई उम्मीदवार घबराकर अपनी योग्यताओं और विचारों को बोर्ड के समक्ष सही रूप में नहीं रख पाता है। इसके विपरीत दुर्बल आवेदक बार-बार साक्षात्कार देने के कारण बोर्ड को प्रभावित कर लेते हो। उम्मीदवार की योग्यता और उपलब्धि पर ही साक्षात्कार की सफलता निर्भर नहीं करती है बल्कि इस प्रकार की परिस्थितियों का सामना करने की चतुराई और कौशल पर निर्भर करती है। योग्य व्यक्ति भी साक्षात्कार की कला में प्रवीण न होने पर असफल रहता है। इस प्रकार साक्षात्कार प्रणाली पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता।
इसमें व्यक्ति दूसरों के व्यवहारों तथा शिष्टाचारों का अनुकरण करता है। साक्षात्कार के समय यह प्रवृत्ति बार-बार देखने में आती है क्योंकि साक्षात्कारकर्त्ता का स्थान उच्च होने के कारण उम्मीदवार अनजाने में उसका अनुकरण कर उससे अपना तादात्म्य स्थापित करने की चेष्टा करता है। साक्षात्कारकर्त्ता के मित्रता व्यक्त करने पर आवेदक में भी ऐसी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न होने लगती हैं। इन्हीं अनुकरणात्मक प्रवृत्तियों को गलत रूप से लेते हैं। फलतः साक्षात्कार में इसके निर्णय भी अयथार्थ होते हैं।
साक्षात्कार में त्रुटियों का सबसे बड़ा स्रोत संभवतः व्यर्थ शब्दावलियों का पूरा-पूरा अर्थ स्पष्ट नहीं किया जाना है। साधारणतः साक्षात्कारकर्त्ताओं को उम्मीदवारों के शीलगुणों से संबंधित कोई सूची नहीं दी जाती है। यदि यह सूची दी भी जाती है तो शायद ही इन्हें स्पष्ट परिभाषित किया जाता है। स्वभावतः व्यक्तिगत निर्णय तथा व्याख्याओं के लिए रास्ता अधिक खुल जाता है, जिसके कारण उम्मीदवार के चयन के प्रश्न पर साक्षात्कारकर्ताओं में घोर मतभेद हो जाता है। निर्णय संबंधी अशुद्धियों की संभावना बढ़ जाती है।
लेकिन महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उपरोक्त कठिनाइयों के बावजूद भी साक्षात्कार की लोकप्रियता कम नहीं होती है। परस्पर आमने-सामने की इस प्रक्रिया में उम्मीदवार के व्यक्तित्व तथा व्यवहार संबंधी अनेक बहुमूल्य रहस्यों का भी उद्घाटन हो सकता है।
साक्षात्कार एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा उम्मीदवारों को उनके भावों तथा विचारों को मौखिक रूप से अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है। यह एक उपयोगी प्रणाली है लेकिन इसको उपयोगी चयन-प्रणाली घोषित करने में मुख्यतया दो प्रकार की कठिनाइयां आती हैं-
इन कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए सुधार संबंधी सुझाव निम्न हो सकते हैं-
साक्षात्कारकर्ता की कुशलता ही साक्षात्कार की सफलता पर आधारित होती है। इसलिए आवश्यक है कि साक्षात्कार समिति के सदस्यों का चयन सावधानीपूर्वक करना चाहिए। साक्षात्कारकर्त्ता को योग्य होना चाहिए। उसमें प्रत्यक्षीकरण की तीक्ष्णता, परिवर्तनशीलता, समायोजनशीलता तथा विविध साक्षात्कार लेने का अनुभव होना चाहिए। उसे साक्षात्कार कला में विशिष्ट प्रशिक्षण भी मिलना चाहिए। इसके बिना साक्षात्कारकर्त्ता साक्षात्कार को सफलतापूर्वक संपन्न नहीं कर सकता है।
साक्षात्कार के समय इन्हें कोई एक ही प्रणाली अपनाने तथा समान आचार संहिता का पालन करने का प्रशिक्षण मिलना चाहिए। बिंघम तथा मूर (Bingham and Moor) ने भावी साक्षात्कारकर्ताओं के प्रशिक्षण हेतु निम्न परामर्श दिए हैं-
शीलगुणों के मापन हेतु वस्तुनिष्ठ पद्धति होनी चाहिए। इसके लिए प्रामाणिक मूल्यांकन मानदंड का प्रयोग अपेक्षित है। मानदंड में जितने भी उपखंड दिखाए जाएं, निर्णय की सत्यता भी उतनी ही अधिक होती है। शीलगुणों की सूची को अनुभव द्वारा, कर्मचारी प्रबंधकों द्वारा व पर्यवेक्षकों द्वारा या तो अग्रिम रूप से तैयार कर लेना चाहिए अथवा सूची का निर्माण कार्य विश्लेषण पद्धति द्वारा होना चाहिए।
प्रश्नों का निर्माण दोषपूर्ण नहीं होना चाहिए, जिससे उम्मीदवार को उसका अर्थ समझने में मुसीबत आती हो। साक्षात्कार में सामाजिक प्रश्नों का पूछना वांछनीय है जो इच्छित शीलगुणों से संबद्ध हों।
साक्षात्कारकर्त्ताओं को विभिन्न समूहों में विभक्त होना चाहिए। प्रत्येक उम्मीदवार के समक्ष एक समूह कम से कम एक बार अवश्य साक्षात्कार करे। इससे निर्णय संबंधी अशुद्धियों को कम किया जा सकता है। साथ ही साक्षात्कार की विश्वसनीयता भी बढ़ सकती है। उपयोगी होते हुए भी यह सुझाव शायद ही व्यावहारिक रूप में प्रयुक्त होता है। कठिनाई इस बात की है कि साक्षात्कार में वैसे ही समय अधिक लगता है, जो और बढ़ जायेगा।
साक्षात्कार मात्र विचार विनिमय ही नहीं है। साक्षात्कार में साक्षात्कार्थी के बाह्य व्यवहारों को भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए। इस स्थिति में साक्षात्कार व्यवहार अथवा परिस्थिति परीक्षणों (Situational Tests) की भांति कार्य करता है।
आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने अपने अनुभवों के आधार पर यह विचार व्यक्त किया है कि साक्षात्कार विधि में वस्तुनिष्ठ पदों (terms) को सम्मिलित किया जा सकता है। अंक प्रदान करने की विधि भी इसी के सदृश अपनायी जा सकती है। साक्षात्कार में प्रयुक्त पदों के प्रामाणीकरण हेतु प्रत्येक उम्मीदवार से एक ही तरह के प्रश्न किए जायें तो इससे साक्षात्कार का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता है। साक्षात्कार परस्पर मौलिक वार्तालाप की पद्धति है जिसमें बातचीत में नए विचार तथा चिंतन पैदा होते हैं। लेकिन बातचीत की दिशा की पूर्ण भविष्यवाणी करना कठिन होता है। साक्षात्कार को प्रामाणिक बनाने हेतु विवरण सूची (Check list) की एक मानकीकृत प्रति समिति के सदस्यों को दी जाये ताकि उसी के अनुरूप व्यवहार किया जा सके। इस सूची में वांछित शीलगुणों की सूची को अग्रिम बनाकर उम्मीदवार से मिलने वाले गुणों को ही चिह्नित करते हैं। इसे 'साक्षात्कार-कर्मचारी मूल्यांकन प्रपत्र' कहते हैं।
गियन नामक विद्वान ने साक्षात्कार के लिए निम्न व्यावहारिक सुझाव दिए हैं-
यदि साक्षात्कार में सही तरीकों को अपनाया जाये तो इसे व्यावसायिक चयन का महत्त्वपूर्ण साधन बनाया जा सकता है। ब्लम तथा नेलर के शब्दों में,
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